ना दिन में चैन, ना रात की खबर,
ना एक पल को आराम, ना एक पल का सबर।
किरदारों के बीच हुई बातें रूहानी लगती हैं,
अब जाकर मुकम्मल हुई वो अधूरी कहानी लगती है।
टूटी फूटी यादें, फिर कुछ किस्से जोड़ा करती हैं,
फिर बातों की रफ़्तार को दिल की धड़कन तक मोड़ा करती हैं।
कभी उथली सी, कभी अंतरंग, कभी जिस्मानी लगती हैं,
अब जाकर मुकम्मल हुई वो अधूरी कहानी लगती है।
कभी लगे इस कहानी का अंत, कोई सार नहीं,
पर सारहीन इन प्रेमपुटों से होता किसको प्यार नहीं।
कभी मीरा, कभी हीर, कभी मस्तानी लगती हैं,
अब जाकर मुकम्मल हुई वो अधूरी कहानी लगती है।
वैसे तो साधारण है, पर अपने आप में खास है,
कुछ नए अध्याय और जोड़ने की जाने क्यों प्यास है।
इस कहानी को लिखने वाली, मनस्वी बेहद दीवानी लगती है,
अब जाकर मुकम्मल हुई वो अधूरी कहानी लगती है।