Friday, 16 May 2025

अधूरे ख़त

जब होती है तुझे क़रीब पाने की आरज़ू

उठाता हूँ काग़ज़ कि लिखूँ तुझे ख़त

इजाज़त नहीं देती कलम जान कर तमन्ना मेरी 

स्याही भी रंग अदा नहीं करती मेरी ख़्वाहिशों को

ये जानतीं है तुझे ख़त बेहद पसंद है लेकिन

शायद ये तेरी हदों को भी जानतीं हैं 

और रह जाती हैं मेरी ख्वाहिशें अधूरी 

जैसे ये अधूरे ख़त 

 

पाज़ेब

तेरे पाँव हसीं हैं ये उनकी ख़ता है 

क़ैद-ए-पाज़ेब उनकी यही सज़ा है 

पहनाऊँ भी मैं मनु उतारूँ भी मैं 

यही मेरी रज़ा है यही मेरी जज़ा है