जब होती है तुझे क़रीब पाने की आरज़ू
उठाता हूँ काग़ज़ कि लिखूँ तुझे ख़त
इजाज़त नहीं देती कलम जान कर तमन्ना मेरी
स्याही भी रंग अदा नहीं करती मेरी ख़्वाहिशों को
ये जानतीं है तुझे ख़त बेहद पसंद है लेकिन
शायद ये तेरी हदों को भी जानतीं हैं
और रह जाती हैं मेरी ख्वाहिशें अधूरी
जैसे ये अधूरे ख़त