क्यों तेरे बदन के तिल तेरे पहरेदार बने हुए हैं
मुसलसुल तेरे हुस्न की हिफ़ाज़त किए हुए है
क्या तिल-ए-लब को थोड़ी रिश्वत अता करे
तेरे होठों के संग मनु कुछ पाल गुज़ार ले